Sunday, September 15, 2024
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सिंधिया को मिल रही चुनौती ,आने वाले चुनाव में।

सिंधिया के साथ उनके गुट के 22 कांग्रेस विधायकों ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली. इसके साथ ही मध्य प्रदेश में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनने का रास्ता खुल गया.

बीजेपी साल 2003 से सत्ता में थी लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई.

इसके बाद कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सरकार बनाई. लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बग़ावत के साथ ही 15 महीनों की कमलनाथ सरकार गिर गयी.

इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर मध्य प्रदेश की सत्ता में आ गयी.

जिस समय ज्योतिरादित्य बीजेपी में शामिल हो रहे थे, उस वक़्त ये चर्चा राजनीतिक गलियारों में ज़ोर शोर से चलने लगी कि शायद भारतीय जनता पार्टी उन्हें मध्य प्रदेश में ‘अहम ज़िम्मेदारी’ सौंपेगी.

कयास लगाए जाने लगे कि प्रदेश में नेतृत्व भी बदला जा सकता है.

काफ़ी लंबी चली अटकलों के बाद सिंधिया को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गयी जबकि उनके साथ भाजपा में शामिल हुए विधायकों में से कुछ को शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया जबकि कुछ को निगमों और मंडलों में जगह दी गयी.

ये तो थी बात विधायकों की. सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले उनके क़रीबी नेता भी अपनी महत्वाकांक्षाओं के साथ नए संगठन में शामिल हुए थे.

समय के साथ इस खेमे में असंतोष पनपने लगा है. और विधानसभा चुनावों के क़रीब आते आते जिन नेताओं को कुछ नहीं मिला उनमें एक तरह की ‘छटपटाहट’ देखी जाने लगी है.

बैजनाथ सिंह यादव बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य थे, मगर अचानक उन्होंने कांग्रेस में ‘घर वापसी’ की घोषणा की.

और सिंधिया खेमे के कई दूसरे नेताओं के साथ वो मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ से मिले और कांग्रेस की सदस्यता ले ली.

कांग्रेस में वापस लौटने पर उन्होंने कहा कि साल 2020 से ही उन्हें भाजपा में ‘घुटन’ हो रही थी, इस लिए उन्हें ये क़दम उठाना पड़ा.

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना के मुताबिक़, बैजनाथ सिंह ने सिर्फ़ ‘घर वापसी’ ही नहीं की बल्कि जिस तरह से वो ग्वालियर से भोपाल आये उसमें एक ‘संदेश’ छिपा हुआ था.

वो कहते हैं, “संदेश उनके भोपाल आने के ‘स्टाइल’ में था. मतलब क़ाफिले में 400 गाड़ियां लेकर वो पहुंचे. स्पष्ट दिख रहा था कि ये संदेश कांग्रेस के लिए तो नहीं था. ऐसा लग रहा था कि ये संदेश सिंधिया खेमे के लिए, और ख़ास तौर पर भारतीय जनता पार्टी के लिए हो सकता था. उन्होंने एक तरह के शक्ति प्रदर्शन की कोशिश भी की जब वो अपने साथ अपने क्षेत्र के लगभग ढाई हज़ार समर्थकों को भी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय लेकर पहुंचे.”

बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं कि जब सिंधिया ने भाजपा का दामन थामा था तब ये कहा जा रहा था कि उन्हें शिवराज सिंह चौहान के विकल्प के रूप में लाया गया है. चूंकि शिवराज सिंह चौहान 16 सालों से प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं. उनके अनुसार, ‘सत्ता विरोधी लहर’ से निपटने के उद्देश्य से भाजपा ऐसा सोच रही थी.

हालांकि भाजपा ने कभी ये नहीं कहा कि सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. लेकिन उनके साथ कांग्रेस से आये नेताओं ने ये एक तरह से मान ही लिया था कि ऐसा ही होगा.

मध्य प्रदेश के बीजेपी नेताओं का रुख

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हितेश वाजपेयी मानते हैं कि सिंधिया खेमे से जो नेता छिटक कर निकल रहे हैं उन्हें लगता होगा कि उनकी अनदेखी हो रही है.

उनका कहना था, “जब ज्योतिरादित्य सिंधिया आये तो उनके साथ उनके सहयोगी भी आये और समर्थक भी. कई राज्य में मंत्री बन गए तो कुछ को महत्वपूर्ण पद भी मिले.

मगर हर किसी को ‘एडजस्ट’ नहीं किया जा सकता था. बहुत सारे ‘अनफिट’ भी थे जो नए संगठन में ‘एडजस्ट’ नहीं कर पा रहे थे. उनमे छटपटाहट स्वाभाविक है. राजनीति में हर कोई महत्वकांक्षी होता ही है.”

हितेश वाजपेयी ने बीबीसी से कहा कि ‘जब सिंधिया के समर्थक भाजपा में आये तो यहाँ भी दो तरह की प्रतिक्रया देखने को मिली. एक वो कार्यकर्ता जिन्होंने आखिर तक इन लोगों को स्वीकार नहीं किया और दूसरे वो जिन्होंने इन्हें स्वीकार कर लिया है.’

वो कहते हैं, “संगठन के वैसे लोग जो कांग्रेस से आयी इस जमात का चुनावों में विरोध करते आ रहे थे या जो ‘हार्डलाइनर्स’ थे, वैसे कार्यकर्ताओं ने इन्हें स्वीकार करने में समय समय पर असहजता व्यक्त की. लेकिन संगठन के फैसले को उन्हें स्वीकार ही करना पड़ा.”

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