प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता ने पिछले कुछ सालों में भाजपा को गठबंधन की राजनीति की बाधाओं से बचने में मदद की है। हालांकि मोदी गठबंधन का महत्व समझते हैं। उन्होंने बीते रविवार को अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को याद दिलाया कि एनडीए के अलावा कोई भी गठबंधन एक चौथाई सदी से बरकरार नहीं है।
लोकसभा चुनाव-2024
2024 के आम चुनावों से पहले विपक्षी दल गठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे संकेत हैं कि भाजपा भी एनडीए में नई जान फूंकने के विकल्पों पर विचार कर रही है। हाल के वर्षों में कई दल एनडीए से बाहर हुए हैं। टीडीपी, जेडी (यू) और शिरोमणि अकाली दल (SAD) गठबंधन छोड़ चुके हैं। एनडीए को पूर्ण शिवसेना का भी समर्थन प्राप्त नहीं है, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला गुट अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ है।
भाजपा के लिए एनडीए का महत्व
1996 में एनडीए सरकार 13 दिन में गिर गई थी। तब कांग्रेस की 140 के मुकाबले भाजपा ने 161 सीटों पर जीत हासिल की थी। यह एनडीए ही था जिसने भाजपा को “राजनीतिक अस्पृश्यता” से उबरने में मदद की थी। एनडीए ने ही कई गैर-कांग्रेसी दलों को कांग्रेस दूरी बनाए रखने की हिम्मत दी थी।
1984 में भाजपा के साथ गठबंधन करने वाली शिवसेना के अलावा उसका कोई ‘सच्चा’ सहयोगी नहीं था। 1996 में अकाली दल, हरियाणा विकास पार्टी (HVP) और समता पार्टी (अब JD-U) के साथ कई सीटों पर समझौता हुआ।
भाजपा को गठबंधन की राजनीति का पहला बड़ा फायदा 1998 में एनडीए के गठन के बाद मिला। इसी वर्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने केंद्र में दूसरी बार सरकार बनाई। इसी वर्ष टीएमसी, अन्नाद्रमुक, शिवसेना और बीजेडी के साथ आने से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का विकास हुआ।
चुनावों में भाजपा को 182 सीटों पर जीत मिली, जबकि एनडीए ने सामूहिक रूप से 261 सीटें जीतीं। बाद में टीडीपी के बाहरी समर्थन देने के फैसले से एनडीए के पास सीटों की संख्या 272 हो गई। यह सरकार बनाने के लिए अनिवार्य जादुई आंकड़े से अधिक था।
गठबंधन को व्यापक आधार देने के लिए भाजपा को मजबूरन राम मंदिर निर्माण करने, धारा 370 खत्म करने और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे वैचारिक प्रतिबद्धताओं से दूरी बनानी पड़ी।
इस तरह जिस गठबंधन ने भाजपा को सत्ता में आने में सक्षम तो बनाया, लेकिन उसकी स्थिरता और निरंतरता बनाए रखने के लिए भाजपा को अपने एजेंडे के किनारा करना पड़ा।